भारत में विपक्षी पार्टियों की भूमिका इतनी नकरात्मक हो चुकी है कि यदि मोदी सरकार धरती पर स्वर्ग भी उतार लाये तो उसका भी जमकर विरोध होगा। इस्लामी संगठन और अपने को सेक्युलर मानने वाले political jokers इसी पर बिखर जायेंगे कि हूरों वाली ज़न्नत क्यों नहीं धरती पर उतारी? यही हाल Farm Policy Reforms को लेकर हो रहा है। जिन मांगो को लेकर किसान संगठनों ने दशकों तक बड़े-बड़े आंदोलन किये – जब उन्हीं मांगो को स्वीकार कर तीन नए क़ानूनों का रूप दिया गया है, तो विपक्ष के नेताओं ने देश भर में किसानों को भ्रमित कर बवाल मचा दिया कि ये कानून किसान विरोधी हैं।
पहला कानून Farmers Produce Trade & Commerce Promotion के लिए बना है जिससे किसान को अपना खेती माल कहीं भी बेचने कीआजादी दी गयी है। अब तक किसान केवल सरकार द्वारा नियोजित APMC (Agricultural Produce Market Committee) द्वारा नियोजित मंडियों के भ्रष्ट और शोषणकारी सिस्टम के तहत ही अपना माल बेच सकते थे, और वो भी सरकार द्वारा तय भाव पर , इस वजह से उन्हें कभी भी वाजिब दाम नहीं मिल पाए। यहाँ तक कि किसान परिवार के बेटे- बेटियों को अपने ही खेतों की फसल अपने निजी इस्तेमाल के लिए शहर लाने पर भी इतनी कड़ी मनाही थी कि उन्हें grain smuggling के इल्ज़ाम में जेल तक भेज दिया जाता रहा है। For factory manufactured products, all of India was one market but not for the farmers of India.
इस कानून से APMC की monopoly खत्म कर दी गई है, किसान अब सरकारी APMC का बंधक नहीं रहा और देश में कहीं भी अपना माल बेच सकता है।
दूसरा बड़ा सुधार है- The Farmers Agreement on Price Assurance and Farm Services Ordinance, 2020, जिससे किसान बड़े corporate buyers के साथ contract करके फसल बोने के समय ही, फसल बिकाई का contract भी कर सकता है।
इस contract के तहत advance में ही सही मूल्य मिलने की guarantee भी प्राप्त की जा सकती है ताकि harvest के बाद औने-पौने दामों में मजबूरन अपनी उपज न बेचनी पड़े।
तीसरा बड़ा कदम है- ब्रिटिश हुकूमत द्वारा लागू किया- Essential Commodities Act का संशोधन ताकि किसान या व्यापारी अपनी हैसियत अनुसार food grains– और अन्य पदार्थ जिन्हें essential commodities declare किया गया है — स्टॉक करके रख सकता है.
मोदी सरकार द्वारा इन तीन नए कानूनों द्वारा किसानों को मिली आर्थिक आज़ादी के खिलाफ दो किस्म के लोग हो सकते है-
– वे लोग जो खेती और किसानों के दुःख-तकलीफों के बारे में कुछ नहीं जानते।
– वे सब लोग जो निजी स्वार्थ के चलते केवल नकरात्मक विरोध की राजनीति करना जानते है।
मैं भी शहरी जीवन की पैदाइश हूँ इसलिए किसानी और खेती का मेरे परिवार से कोई रिश्ता नहीं रहा। परन्तु ईश्वर ने इतनी समझ दे दी कि जब तक देश का अन्नदाता दुखी है, तब तक देश खुशहाल नहीं हो सकता। इसी सोच के चलते कई साल किसान संगठनों के साथ रिश्ता जोड़ा, जिसमें महाराष्ट्र के शेतकरी संगठन के साथ विशेषकर घनिष्ठ नाता रहा और बड़े किसान आंदोलनों में हिस्सा लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उसी दौर में सन 1997 में मैंने यह डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई, जो आपको अंदाजा देगी कि कैसी गुलामी में हमारे देश के किसान जी रहे थे।
किसानों की कहानी उन्हीं की ज़ुबानी इस फिल्म में सुनाने का मैंने प्रयास किया था।
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